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by ????? ???? (Jagarama Si?ha)
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Overview

ईश्वर ही सत्य स्वरूप है यह सत्य की स्थापना ही धर्म स्थापना है। धर्म स्थापना अथार्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण, पुनर्निर्माण तो सक्षम, सबल, सुदृढ़ समाज से ही संभव, ऐसा समाज तो आदर्श परिवारों से ही बन सकता है, यह परिवार का ताना-बाना रिश्तों की डोर से गुंथा होता है, रिश्ते व्यक्तियों से बनते-बिगड़ते हैं। धर्माचरित व्यक्ति है तो धर्म के रिश्ते, । इन रिश्तों की चादर को स्वस्थ, पवित्र बनाए रखने के लिए हमारे मनीषियों ने हर दिन पावन अथार्त पर्वों की श्रृंखलाबद्ध योजना की। जिसका अर्थ जोड़ना, साहचर्य स्थापित करना, सामरस्य निर्माण करना, इसी बात को आद्यसरसंघचालक डॉ. हेडगेवार को भी संघ स्थापना के बाद ऐसा लगा कि संगठन को स्फूर्तिवान, चैतन्य बनाए रखने के लिए उत्सवों की योजना हो। उसी कड़ी में (i) वर्ष प्रतिपदा, -सृष्टि का निर्माण एवं संघ के निर्माता के प्रति कृतज्ञता, (ii)गुरुपूर्णिमा-गुरु के प्रति सच्चा समर्पण,(iii)रक्षाबंधन-समाज के प्रति निःस्वार्थ प्रेम, अपनेपन का भाव, (iv)विजयादशमी- विजिगीषु वृत्ति का भाव अथार्त त्वयं साम्राज्यवादिना का संकल्प साथ ही संघस्थापना दिवस कास्मरण, (v)मकरसंक्रांति-सर्वसमावेशी, सामरस्य, (vi) हिन्दू साम्राज्य दिवस- विजय का उल्लास आदि भावों के स्मरण ने इस पुस्तक को लिखने की जिज्ञासा उत्पन्न की। साथ ही युगानुकूल व्याख्या करने की जो दृष्टि विगत अनुभवों से मिली थी उसे ही शब्द रूप देने का संकल्प इस पुस्तक रूपी गंगा की पवित्र यात्रा का वृतांत है।

Product Details

ISBN-13: 9788121253628
Publisher: Gyan Publishing House
Publication date: 06/30/2019
Sold by: Barnes & Noble
Format: eBook
Pages: 109
File size: 2 MB
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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