मानव विकास के स्वरूप का विवेचन एक जटिल कार्य है तथापि विकास मनोवैज्ञानिकों ने विशिष्ट शोध उपागमों की सहायता से मानव विकास के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की है। मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अन्तर्गत विकासात्मक मनोविज्ञान एक प्रमुख क्षेत्र रहा है जो इस अवधारणा पर आधारित है कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवं व्यवहारपरक प्रक्रमों की सम्यक् जानकारी हेतु अध्ययन की यात्रा 'यात्रा जीवन के आरम्भ (गर्भाधान) से जीवन के अन्त तक', संचालित रखी जाय तभी विकास के वास्तविक स्वरूप का विश्लेषण सम्भव हो सकता है। 'मानव विकास का मनोविज्ञान' जीवनकालिक विकास के दृष्टिकोण से विविध प्रक्रमों के विकास को प्रस्तुत करने का एक सम्यक् प्रयास है। यद्यपि विकास निरन्तर चलने वाला प्रक्रम है तथापि विकास के प्रत्येक चरण में गुणात्मक एवं मात्रात्मक परिवर्तन घटित होते हैं। अतः इन परिवर्तनों का व्यापक अध्ययन विकासात्मक अध्ययन के उपागमों द्वारा किया गया है जिनसे जीवनकालिक विकास के बारे में समुचित जानकारी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में जीवन के विभिन्न चरणों (गर्भाधान से जीवन के अन्त तक) में पाये जाने वाले विकास संरूपों एवं प्रक्रमों का वर्णन एवं विश्लेषण उपयुक्त अनुसन्धानों एवं सैद्धान्तिक उपागमों के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। यह पुस्तक हिन्दी माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर लिखी गयी है। चूँकि विकासात्मक मनोविज्ञान अत्यन्त लोकप्रिय शाखा होने के कारण प्रायः सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। अतः विषय की प्रासंगिकता एवं बोधगम्यता को समुचित बनाने के लिए इस पुस्तक का लेखन किया गया है।