Chhattisgarh Ke Garh (छत्तीसगढ़ के गढ़)
यह पुस्तक छत्तीसगढ़ राज्य के नाम की उत्पत्ति और इसके ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित एक शोधपरक कृति है। लेखक, सनत कुमार सिंघई और क्षितिज सिंघई, ने 'छत्तीसगढ़' शब्द के उद्भव से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों और तथ्यात्मक धारणाओं का गहन विश्लेषण किया है।
पुस्तक की भूमिका में बताया गया है कि 1 नवंबर, 2000 को स्थापित छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास बहुत पुराना है, जिसे पहले महाकोसल, महाकांतार, दक्षिण कोसल और दण्डकारण्य जैसे नामों से जाना जाता था। 'छत्तीसगढ़' नाम को लेकर कई मत प्रचलित हैं। एक धारणा के अनुसार, यह शब्द 'चेदीगढ़' से निकला है, जिसका संबंध कलचुरी राजवंश से था। एक अन्य तथ्यात्मक धारणा यह है कि 1487 ई. में खैरागढ़ के राजा के चारण कवि दलपतराम राव ने अपनी रचना में इस शब्द का पहली बार प्रयोग किया था। बाद में, 1689 ई. में कवि गोपाल मिश्र और फिर बाबू रेवाराम ने भी इसका उल्लेख किया ।
पुस्तक में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दक्षिण कोसल में 36 दुर्ग (गढ़) होने के कारण राजा ब्रह्मदेव ने इसे छत्तीसगढ़ नाम दिया था। ये 36 गढ़ दो राज्यों - रतनपुर और रायपुर में बंटे थे, प्रत्येक में 18-18 गढ़ थे। मराठाओं के अधीन आने के बाद इन दोनों राज्यों के लिए संयुक्त रूप से 'छत्तीसगढ़' शब्द का उपयोग होने लगा था। यह पुस्तक ऐतिहासिक दस्तावेजों और संदर्भों के आधार पर छत्तीसगढ़ के गढ़ों पर शोध करने वाले पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है
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Chhattisgarh Ke Garh (छत्तीसगढ़ के गढ़)
यह पुस्तक छत्तीसगढ़ राज्य के नाम की उत्पत्ति और इसके ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित एक शोधपरक कृति है। लेखक, सनत कुमार सिंघई और क्षितिज सिंघई, ने 'छत्तीसगढ़' शब्द के उद्भव से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों और तथ्यात्मक धारणाओं का गहन विश्लेषण किया है।
पुस्तक की भूमिका में बताया गया है कि 1 नवंबर, 2000 को स्थापित छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास बहुत पुराना है, जिसे पहले महाकोसल, महाकांतार, दक्षिण कोसल और दण्डकारण्य जैसे नामों से जाना जाता था। 'छत्तीसगढ़' नाम को लेकर कई मत प्रचलित हैं। एक धारणा के अनुसार, यह शब्द 'चेदीगढ़' से निकला है, जिसका संबंध कलचुरी राजवंश से था। एक अन्य तथ्यात्मक धारणा यह है कि 1487 ई. में खैरागढ़ के राजा के चारण कवि दलपतराम राव ने अपनी रचना में इस शब्द का पहली बार प्रयोग किया था। बाद में, 1689 ई. में कवि गोपाल मिश्र और फिर बाबू रेवाराम ने भी इसका उल्लेख किया ।
पुस्तक में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दक्षिण कोसल में 36 दुर्ग (गढ़) होने के कारण राजा ब्रह्मदेव ने इसे छत्तीसगढ़ नाम दिया था। ये 36 गढ़ दो राज्यों - रतनपुर और रायपुर में बंटे थे, प्रत्येक में 18-18 गढ़ थे। मराठाओं के अधीन आने के बाद इन दोनों राज्यों के लिए संयुक्त रूप से 'छत्तीसगढ़' शब्द का उपयोग होने लगा था। यह पुस्तक ऐतिहासिक दस्तावेजों और संदर्भों के आधार पर छत्तीसगढ़ के गढ़ों पर शोध करने वाले पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है
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Overview

यह पुस्तक छत्तीसगढ़ राज्य के नाम की उत्पत्ति और इसके ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित एक शोधपरक कृति है। लेखक, सनत कुमार सिंघई और क्षितिज सिंघई, ने 'छत्तीसगढ़' शब्द के उद्भव से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों और तथ्यात्मक धारणाओं का गहन विश्लेषण किया है।
पुस्तक की भूमिका में बताया गया है कि 1 नवंबर, 2000 को स्थापित छत्तीसगढ़ राज्य का इतिहास बहुत पुराना है, जिसे पहले महाकोसल, महाकांतार, दक्षिण कोसल और दण्डकारण्य जैसे नामों से जाना जाता था। 'छत्तीसगढ़' नाम को लेकर कई मत प्रचलित हैं। एक धारणा के अनुसार, यह शब्द 'चेदीगढ़' से निकला है, जिसका संबंध कलचुरी राजवंश से था। एक अन्य तथ्यात्मक धारणा यह है कि 1487 ई. में खैरागढ़ के राजा के चारण कवि दलपतराम राव ने अपनी रचना में इस शब्द का पहली बार प्रयोग किया था। बाद में, 1689 ई. में कवि गोपाल मिश्र और फिर बाबू रेवाराम ने भी इसका उल्लेख किया ।
पुस्तक में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दक्षिण कोसल में 36 दुर्ग (गढ़) होने के कारण राजा ब्रह्मदेव ने इसे छत्तीसगढ़ नाम दिया था। ये 36 गढ़ दो राज्यों - रतनपुर और रायपुर में बंटे थे, प्रत्येक में 18-18 गढ़ थे। मराठाओं के अधीन आने के बाद इन दोनों राज्यों के लिए संयुक्त रूप से 'छत्तीसगढ़' शब्द का उपयोग होने लगा था। यह पुस्तक ऐतिहासिक दस्तावेजों और संदर्भों के आधार पर छत्तीसगढ़ के गढ़ों पर शोध करने वाले पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है

Product Details

ISBN-13: 9789371227476
Publisher: Diamond Pocket Books Pvt Ltd
Publication date: 08/19/2025
Pages: 194
Product dimensions: 5.50(w) x 8.50(h) x 0.45(d)
Language: Hindi
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