Gita-Mata
महात्मा गांधीजी ने गीता को 'माता' की संज्ञा दी थी। उसके प्रति उनका असीम अनुराग और भक्ति थी। उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल-सुबोध भाषा में तात्पर्य दिया, जो 'गीता-बोध' के नाम से प्रकाशित हुआ। उन्होंने सारे श्लोकों की टीका की और उसे 'अनासक्तियोग' का नाम दिया। कुछ भक्ति-प्रधान श्लोकों को चुनकर 'गीता-प्रवेशिका' पुस्तिका निकलवाई। इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने 'गीता-पदार्थ-कोश' तैयार करके न केवल शब्दों का सुगम अर्थ दिया, अपितु उन शब्दों के प्रयोग-स्थलों का निर्देश भी किया। गीता के मूल पाठ के साथ वह संपूर्ण सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में संकलित है। गीता को हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में असाधारण लोकप्रियता प्राप्त है। असंख्य व्यक्ति गहरी भावना से उसे पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसके समाधान में गीता सहायक न होती हो। उसमें ज्ञान, भक्ति तथा कर्म का अद्भुत समन्वय है और मानव-जीवन इन्हीं तीन अधिष्ठानों पर आधारित है। महात्मा गांधी की कलम से प्रसूत गीता पर एक संपूर्ण पुस्तक, जो जीवन के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालकर पाठक की कर्मशीलता को गतिमान करेगी।
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महात्मा गांधीजी ने गीता को 'माता' की संज्ञा दी थी। उसके प्रति उनका असीम अनुराग और भक्ति थी। उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल-सुबोध भाषा में तात्पर्य दिया, जो 'गीता-बोध' के नाम से प्रकाशित हुआ। उन्होंने सारे श्लोकों की टीका की और उसे 'अनासक्तियोग' का नाम दिया। कुछ भक्ति-प्रधान श्लोकों को चुनकर 'गीता-प्रवेशिका' पुस्तिका निकलवाई। इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने 'गीता-पदार्थ-कोश' तैयार करके न केवल शब्दों का सुगम अर्थ दिया, अपितु उन शब्दों के प्रयोग-स्थलों का निर्देश भी किया। गीता के मूल पाठ के साथ वह संपूर्ण सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में संकलित है। गीता को हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में असाधारण लोकप्रियता प्राप्त है। असंख्य व्यक्ति गहरी भावना से उसे पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसके समाधान में गीता सहायक न होती हो। उसमें ज्ञान, भक्ति तथा कर्म का अद्भुत समन्वय है और मानव-जीवन इन्हीं तीन अधिष्ठानों पर आधारित है। महात्मा गांधी की कलम से प्रसूत गीता पर एक संपूर्ण पुस्तक, जो जीवन के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालकर पाठक की कर्मशीलता को गतिमान करेगी।
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by Mahatma Gandhi
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महात्मा गांधीजी ने गीता को 'माता' की संज्ञा दी थी। उसके प्रति उनका असीम अनुराग और भक्ति थी। उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल-सुबोध भाषा में तात्पर्य दिया, जो 'गीता-बोध' के नाम से प्रकाशित हुआ। उन्होंने सारे श्लोकों की टीका की और उसे 'अनासक्तियोग' का नाम दिया। कुछ भक्ति-प्रधान श्लोकों को चुनकर 'गीता-प्रवेशिका' पुस्तिका निकलवाई। इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ तो उन्होंने 'गीता-पदार्थ-कोश' तैयार करके न केवल शब्दों का सुगम अर्थ दिया, अपितु उन शब्दों के प्रयोग-स्थलों का निर्देश भी किया। गीता के मूल पाठ के साथ वह संपूर्ण सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में संकलित है। गीता को हमारे देश में ही नहीं, सारे संसार में असाधारण लोकप्रियता प्राप्त है। असंख्य व्यक्ति गहरी भावना से उसे पढ़ते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। जीवन की कोई भी ऐसी समस्या नहीं, जिसके समाधान में गीता सहायक न होती हो। उसमें ज्ञान, भक्ति तथा कर्म का अद्भुत समन्वय है और मानव-जीवन इन्हीं तीन अधिष्ठानों पर आधारित है। महात्मा गांधी की कलम से प्रसूत गीता पर एक संपूर्ण पुस्तक, जो जीवन के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालकर पाठक की कर्मशीलता को गतिमान करेगी।

Product Details

ISBN-13: 9789353229382
Publisher: Prabhat Prakashan Pvt Ltd
Publication date: 01/02/2021
Pages: 210
Product dimensions: 5.50(w) x 8.50(h) x 0.48(d)
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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