Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति: हीरे जो कभी परखे ही न गए - ओशो)
कृष्ण का व्यत्तिफ़त्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में है, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ के बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।
कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यत्तिफ़ हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना चाहिए=जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यत्तिफ़ हैं=हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म, जीवन को समग्र रूप से स्वीकार करने वाला धर्म अभी पैदा होने को है।
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Krishna Smriti (कृष्ण स्मृति: हीरे जो कभी परखे ही न गए - ओशो)
कृष्ण का व्यत्तिफ़त्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में है, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ के बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।
कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यत्तिफ़ हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना चाहिए=जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यत्तिफ़ हैं=हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म, जीवन को समग्र रूप से स्वीकार करने वाला धर्म अभी पैदा होने को है।
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by Osho
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Overview

कृष्ण का व्यत्तिफ़त्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में है, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ के बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।
कृष्ण अकेले ही ऐसे व्यत्तिफ़ हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, रोते हुए नहीं हैं। साधारणतः संत का लक्षण ही रोता हुआ होना चाहिए=जिंदगी से उदास, हारा हुआ, भागा हुआ। कृष्ण अकेले ही नाचते हुए व्यत्तिफ़ हैं=हंसते हुए, गीत गाते हुए। अतीत का सारा धर्म दुखवादी था। कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था। हंसता हुआ धर्म, जीवन को समग्र रूप से स्वीकार करने वाला धर्म अभी पैदा होने को है।

Product Details

ISBN-13: 9789352969159
Publisher: Diamond Pocket Books Pvt Ltd
Publication date: 09/25/2019
Pages: 518
Product dimensions: 6.00(w) x 9.00(h) x 1.04(d)
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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