Vida Hoti Betiyan
"विदा होती बेटियाँ" ओम प्रकाश का यह संग्रह भारतीय सामाजिकता के भीतर से,एक खाली केनवास पर पहले-पहल जीवन के विविध रंग भरने का,संवेदनात्मक उपक्रम है। नरेटिव्ह फार्म में कुछ जीवन यात्राएँ, कुछ प्रसंग और रिश्तों की नमी के चित्र हैं। माँ,पिता,बेटियाँ,परिंदे,मछलियाँ,मज़दूर,जगहें और स्त्रियों का यथार्थ समय संग्रह में धड़कता प्रतीत होता है ।इस धड़कन के मूल में प्रेम है। यह प्रेम इंसानियत की सिम्त है। इस क्षरण काल में जबकि भाईचारा,सामूहिकता,आपस के दु ख-सुख के मानी बदल रहे हैं तब कवि उन्हें बचाने के संघर्ष में बना रहता है- "हे प्रभु /आँखों में सपने देना/तो उन्हें पूर्ण करने का साहस भी देना/ताकि बोझिल पंख लिए/विदा होने से बचा सकूँ ख़ुद को ।" कविताओं में करुणा के सुर गूंजते सुनाई देते हैं। एक गहरे आत्म स्वीकार का नैतिक साहस भी अभिव्यक्त है मसलन- "विदा होती बेटियाँ/ कभी-कभी/ हमेशा के लिए भी/ विदा हो जाती हैं" बेटियाँ विदाई के साथ आँगन की धूप,मंदिर की घंटियाँ,बचपन,आँसू,चूड़ियों और पायल के स्वर सब छोड़ जाती हैं और किसी गुमसुम उदास रात में 'चाँद' की तरह डूब भी जाती हैं। यह करुणा स्त्री जीवन के अनेक आयामों को समेटती है। इसका विस्तार अन्य सच्चाइयों में होता है।'सुशांत' कविता युवा पीढ़ी को संबोधित है। इसमें विस्थापन की मजबूरी को लेकर दर्द का अलग सच है-"सुशांत/यह अपने घर लौटने का दौर है/काश तुमसे सीखकर/ लौट आएँ/वो सभी सुशांत/जिनका महानगरों में होना/कोई ख़ास मायने नहीं रखता।" कविताओं में चीजों,नातों, भावनाओं,विचारों आदि को बचाने की एक अव्यक्त हांटिंग पुकार है। इसे हम मनुष्यता की पुकार कह सकते हैं।

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Vida Hoti Betiyan
"विदा होती बेटियाँ" ओम प्रकाश का यह संग्रह भारतीय सामाजिकता के भीतर से,एक खाली केनवास पर पहले-पहल जीवन के विविध रंग भरने का,संवेदनात्मक उपक्रम है। नरेटिव्ह फार्म में कुछ जीवन यात्राएँ, कुछ प्रसंग और रिश्तों की नमी के चित्र हैं। माँ,पिता,बेटियाँ,परिंदे,मछलियाँ,मज़दूर,जगहें और स्त्रियों का यथार्थ समय संग्रह में धड़कता प्रतीत होता है ।इस धड़कन के मूल में प्रेम है। यह प्रेम इंसानियत की सिम्त है। इस क्षरण काल में जबकि भाईचारा,सामूहिकता,आपस के दु ख-सुख के मानी बदल रहे हैं तब कवि उन्हें बचाने के संघर्ष में बना रहता है- "हे प्रभु /आँखों में सपने देना/तो उन्हें पूर्ण करने का साहस भी देना/ताकि बोझिल पंख लिए/विदा होने से बचा सकूँ ख़ुद को ।" कविताओं में करुणा के सुर गूंजते सुनाई देते हैं। एक गहरे आत्म स्वीकार का नैतिक साहस भी अभिव्यक्त है मसलन- "विदा होती बेटियाँ/ कभी-कभी/ हमेशा के लिए भी/ विदा हो जाती हैं" बेटियाँ विदाई के साथ आँगन की धूप,मंदिर की घंटियाँ,बचपन,आँसू,चूड़ियों और पायल के स्वर सब छोड़ जाती हैं और किसी गुमसुम उदास रात में 'चाँद' की तरह डूब भी जाती हैं। यह करुणा स्त्री जीवन के अनेक आयामों को समेटती है। इसका विस्तार अन्य सच्चाइयों में होता है।'सुशांत' कविता युवा पीढ़ी को संबोधित है। इसमें विस्थापन की मजबूरी को लेकर दर्द का अलग सच है-"सुशांत/यह अपने घर लौटने का दौर है/काश तुमसे सीखकर/ लौट आएँ/वो सभी सुशांत/जिनका महानगरों में होना/कोई ख़ास मायने नहीं रखता।" कविताओं में चीजों,नातों, भावनाओं,विचारों आदि को बचाने की एक अव्यक्त हांटिंग पुकार है। इसे हम मनुष्यता की पुकार कह सकते हैं।

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Vida Hoti Betiyan

by Om Prakash
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by Om Prakash

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"विदा होती बेटियाँ" ओम प्रकाश का यह संग्रह भारतीय सामाजिकता के भीतर से,एक खाली केनवास पर पहले-पहल जीवन के विविध रंग भरने का,संवेदनात्मक उपक्रम है। नरेटिव्ह फार्म में कुछ जीवन यात्राएँ, कुछ प्रसंग और रिश्तों की नमी के चित्र हैं। माँ,पिता,बेटियाँ,परिंदे,मछलियाँ,मज़दूर,जगहें और स्त्रियों का यथार्थ समय संग्रह में धड़कता प्रतीत होता है ।इस धड़कन के मूल में प्रेम है। यह प्रेम इंसानियत की सिम्त है। इस क्षरण काल में जबकि भाईचारा,सामूहिकता,आपस के दु ख-सुख के मानी बदल रहे हैं तब कवि उन्हें बचाने के संघर्ष में बना रहता है- "हे प्रभु /आँखों में सपने देना/तो उन्हें पूर्ण करने का साहस भी देना/ताकि बोझिल पंख लिए/विदा होने से बचा सकूँ ख़ुद को ।" कविताओं में करुणा के सुर गूंजते सुनाई देते हैं। एक गहरे आत्म स्वीकार का नैतिक साहस भी अभिव्यक्त है मसलन- "विदा होती बेटियाँ/ कभी-कभी/ हमेशा के लिए भी/ विदा हो जाती हैं" बेटियाँ विदाई के साथ आँगन की धूप,मंदिर की घंटियाँ,बचपन,आँसू,चूड़ियों और पायल के स्वर सब छोड़ जाती हैं और किसी गुमसुम उदास रात में 'चाँद' की तरह डूब भी जाती हैं। यह करुणा स्त्री जीवन के अनेक आयामों को समेटती है। इसका विस्तार अन्य सच्चाइयों में होता है।'सुशांत' कविता युवा पीढ़ी को संबोधित है। इसमें विस्थापन की मजबूरी को लेकर दर्द का अलग सच है-"सुशांत/यह अपने घर लौटने का दौर है/काश तुमसे सीखकर/ लौट आएँ/वो सभी सुशांत/जिनका महानगरों में होना/कोई ख़ास मायने नहीं रखता।" कविताओं में चीजों,नातों, भावनाओं,विचारों आदि को बचाने की एक अव्यक्त हांटिंग पुकार है। इसे हम मनुष्यता की पुकार कह सकते हैं।


Product Details

ISBN-13: 9789358695892
Publisher: Pralek Prakashan
Publication date: 08/07/2025
Pages: 200
Product dimensions: 5.50(w) x 8.50(h) x 0.63(d)
Language: Hindi
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