मैं इश्क़ लिखना चाहूँ...
'मैं इश्क़ लिखना चाहूँ' ये क़िताब एक आवाज़ है । आवाज़ ख़ुद की जो कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाई ! अधूरे किस्से, कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अधूरे प्रेमी जिनका मिलना सिर्फ इन कविताओं में ही मुमकिन है । इश्क़ पाने की हिम्मत नहीं सिर्फ खोने का एहसास ज़िंदा रखती है ये क़िताब ।
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मैं इश्क़ लिखना चाहूँ...
'मैं इश्क़ लिखना चाहूँ' ये क़िताब एक आवाज़ है । आवाज़ ख़ुद की जो कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाई ! अधूरे किस्से, कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अधूरे प्रेमी जिनका मिलना सिर्फ इन कविताओं में ही मुमकिन है । इश्क़ पाने की हिम्मत नहीं सिर्फ खोने का एहसास ज़िंदा रखती है ये क़िताब ।
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मैं इश्क़ लिखना चाहूँ...

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by Iqra Patil
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Overview

'मैं इश्क़ लिखना चाहूँ' ये क़िताब एक आवाज़ है । आवाज़ ख़ुद की जो कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाई ! अधूरे किस्से, कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अधूरे प्रेमी जिनका मिलना सिर्फ इन कविताओं में ही मुमकिन है । इश्क़ पाने की हिम्मत नहीं सिर्फ खोने का एहसास ज़िंदा रखती है ये क़िताब ।

Product Details

ISBN-13: 9789370928558
Publisher: Bookleaf Publishing
Publication date: 06/14/2025
Pages: 64
Product dimensions: 5.00(w) x 8.00(h) x 0.13(d)
Language: Hindi

About the Author

मैं उसी खेत,खलिहान और गॉंव की मिट्टीसे आती हूँ जिससे मैं आखरी दम तक जुडी रहुँगी। मैं इक़रा पाटील, महाराष्ट्र के तोळनूर गाँव के किसान की बेटी जो शेहर मे आकर केमिस्ट्री में मास्टर्स करती है ! जब नाटक के साथ केमिस्ट्री जुड़ गई तब हर किसकी सँवेदना को जीने कि क्षमता मुझमें आयी । नाटक, में साहित्य से लेकर सँगीत तक सारी कलाएँ शामिल हैं । ' पद्य ' साहित्य में मेरी रुची बढ़ती गयी । कुछ सुझा, कुछ लिखा और कुछ जमा हुवा । शायरी पढ़नेवाली मैं लिखनेवाली बन गयी। मेरा लिखा हुवा कोई सुनने भी लगा । मेरी भावनाएँ शब्दोंसे सहजतासे काग़ज़ पर उतरती रही। बहोत सारी कविताएँ काग़ज़ पर उतरी नही, बहोत सारी लिखी हुई कविताओंसे फिर मुलकात ना हो पायी । जो बची रही उनको उनके वाचकों तक पहुँचाने कि ये कोशीश ।
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