हमारे हिस्से का आसमाँ
हमारे हिस्से का आसमाँ कविता संग्रह में संकलित कविताएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि उन अनुभवों का सृजनात्मक प्रतिबिंब हैं जो देवदार और चीड़ के वनों की गंध, नदियों के स्वर, भूस्खलन, मानव-वन्यजीव संघर्ष और वनाग्नि से जूझते उत्तराखंड के पहाड़ों की पीड़ा से उपजे हैं। यहीं उनकी लेखनी "करने" और "होने" के मध्य सेतु बनती है-जहाँ एक ओर वन-सेवक का कर्तव्य है, तो दूसरी ओर कवि का वह सपना जो पत्तियों की खनखनाहट और नदियों की लहरों में ईश्वर को तलाशता है। उनके लिए प्रकृति कोई विषय नहीं, बल्कि सह-रचयिता है। जिस तरह उन्होंने प्रकृति को सहेजा, उसी तरह उनकी कविताएँ शब्दों को साधती हैं-बिना भाषा की हदों में बाँधे। डा. पाण्डेय की रचनाधर्मिता सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि एक ऐसी दृष्टि है जो मानवीय संघर्ष और प्रकृति के संगीत को एक साथ बाँधती है।वे मानते हैं कि "कविता और भारतीय वन सेवा दोनों ही धैर्य की मिट्टी में उगते हैं-एक में बीज प्रस्फुटित होता है, तो दूसरे में शब्द।"
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हमारे हिस्से का आसमाँ
हमारे हिस्से का आसमाँ कविता संग्रह में संकलित कविताएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि उन अनुभवों का सृजनात्मक प्रतिबिंब हैं जो देवदार और चीड़ के वनों की गंध, नदियों के स्वर, भूस्खलन, मानव-वन्यजीव संघर्ष और वनाग्नि से जूझते उत्तराखंड के पहाड़ों की पीड़ा से उपजे हैं। यहीं उनकी लेखनी "करने" और "होने" के मध्य सेतु बनती है-जहाँ एक ओर वन-सेवक का कर्तव्य है, तो दूसरी ओर कवि का वह सपना जो पत्तियों की खनखनाहट और नदियों की लहरों में ईश्वर को तलाशता है। उनके लिए प्रकृति कोई विषय नहीं, बल्कि सह-रचयिता है। जिस तरह उन्होंने प्रकृति को सहेजा, उसी तरह उनकी कविताएँ शब्दों को साधती हैं-बिना भाषा की हदों में बाँधे। डा. पाण्डेय की रचनाधर्मिता सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि एक ऐसी दृष्टि है जो मानवीय संघर्ष और प्रकृति के संगीत को एक साथ बाँधती है।वे मानते हैं कि "कविता और भारतीय वन सेवा दोनों ही धैर्य की मिट्टी में उगते हैं-एक में बीज प्रस्फुटित होता है, तो दूसरे में शब्द।"
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Product Details
ISBN-13: | 9789369530472 |
---|---|
Publisher: | Bookleaf Publishing |
Publication date: | 05/23/2025 |
Pages: | 68 |
Product dimensions: | 5.00(w) x 8.00(h) x 0.14(d) |
Language: | Hindi |
About the Author
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