Chandrashekhar
मेरे लिए और कोई रास्ता ही नहीं है। तुमको मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि इस झगड़े में मीर क़ासिम ने कुछ मुलायम स्वर में कहा, बिलकुल ही मेरी हो। इसलिए तुम्हारे सामने कहता हूँ सल्तनत हाथ से चली जाएगी, हो सकता है कि जान भी चली जाए। तब क्या लड़ाई करनी चाहिए? अँग्रेज़ जैसी हरकतें करते हैं, जैसे कार्य करते हैं, उनसे वे ही बादशाह हैं, मैं बादशाह नहीं हूँ। जिस सल्तनत का मैं सुल्तान नहीं, उस सल्तनत में मेरी ज़रूरत ही क्या ? सिर्फ़ इतना ही नहीं। वे कहते हैं, बादशाह हम हैं, मगर प्रजा को तकलीफ़ देने का बोझ तुम पर है। तुम हमारी होकर प्रजा को तकलीफ़ दो। क्या मैं ऐसा करूँगा ? अगर प्रजा की भलाई के लिए हुकूमत न कर सकूँगा, तो उस सल्तनत को छोड़ दूँगा। बेमतलब पाप और बदनामी क्यों अपने सिर लूँगा ? मैं सिराजुद्दौला नहीं और न मैं मीर जाफ़र ही हूँ। ... इसी उपन्यास से स
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Chandrashekhar
मेरे लिए और कोई रास्ता ही नहीं है। तुमको मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि इस झगड़े में मीर क़ासिम ने कुछ मुलायम स्वर में कहा, बिलकुल ही मेरी हो। इसलिए तुम्हारे सामने कहता हूँ सल्तनत हाथ से चली जाएगी, हो सकता है कि जान भी चली जाए। तब क्या लड़ाई करनी चाहिए? अँग्रेज़ जैसी हरकतें करते हैं, जैसे कार्य करते हैं, उनसे वे ही बादशाह हैं, मैं बादशाह नहीं हूँ। जिस सल्तनत का मैं सुल्तान नहीं, उस सल्तनत में मेरी ज़रूरत ही क्या ? सिर्फ़ इतना ही नहीं। वे कहते हैं, बादशाह हम हैं, मगर प्रजा को तकलीफ़ देने का बोझ तुम पर है। तुम हमारी होकर प्रजा को तकलीफ़ दो। क्या मैं ऐसा करूँगा ? अगर प्रजा की भलाई के लिए हुकूमत न कर सकूँगा, तो उस सल्तनत को छोड़ दूँगा। बेमतलब पाप और बदनामी क्यों अपने सिर लूँगा ? मैं सिराजुद्दौला नहीं और न मैं मीर जाफ़र ही हूँ। ... इसी उपन्यास से स
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by Bankim Chandra Chattopadhyay
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by Bankim Chandra Chattopadhyay

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मेरे लिए और कोई रास्ता ही नहीं है। तुमको मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि इस झगड़े में मीर क़ासिम ने कुछ मुलायम स्वर में कहा, बिलकुल ही मेरी हो। इसलिए तुम्हारे सामने कहता हूँ सल्तनत हाथ से चली जाएगी, हो सकता है कि जान भी चली जाए। तब क्या लड़ाई करनी चाहिए? अँग्रेज़ जैसी हरकतें करते हैं, जैसे कार्य करते हैं, उनसे वे ही बादशाह हैं, मैं बादशाह नहीं हूँ। जिस सल्तनत का मैं सुल्तान नहीं, उस सल्तनत में मेरी ज़रूरत ही क्या ? सिर्फ़ इतना ही नहीं। वे कहते हैं, बादशाह हम हैं, मगर प्रजा को तकलीफ़ देने का बोझ तुम पर है। तुम हमारी होकर प्रजा को तकलीफ़ दो। क्या मैं ऐसा करूँगा ? अगर प्रजा की भलाई के लिए हुकूमत न कर सकूँगा, तो उस सल्तनत को छोड़ दूँगा। बेमतलब पाप और बदनामी क्यों अपने सिर लूँगा ? मैं सिराजुद्दौला नहीं और न मैं मीर जाफ़र ही हूँ। ... इसी उपन्यास से स

Product Details

ISBN-13: 9789367937464
Publisher: Prabhakar Prakashan Private Limited
Publication date: 05/05/2025
Pages: 138
Product dimensions: 5.50(w) x 8.50(h) x 0.32(d)
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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