outsider
इंसान ने जंगलों को छोड़ स्थिरता को अपनाया, आज से बहुत साल पहले। पूरा संसार मेरा है वाला भाव जाता रहा, घर एक स्थायी इलाका हो गया। सीमित लेकिन सुरक्षित। इसने अपनेपन को मानव के डी एन ए में रचा बसा दिया। अब मानव वहीं पनपता है, जहाँ घर हो या घर वाला भाव। घर एक व्यक्ति भी है, हर एक संवेदना भी है। और दिल टूट जाता है जब अपनेपन का अभाव हो। ज़रा सी भी नकारात्मकता की बू आयी, तो फिर मानव का मन वहां नहीं ठहरता, ठहरना एक मजबूरी हो जाती है, सब होते हुए भी मन का एक कोना सूना और उदास ही बना रहता है। कोई इस भाव में फंसा रह जाता है, कोई निकल भागता है। उन तरल भावनाओं में, जहाँ खुद से कोई पूछने लगे, कि कहाँ के हम हैं? पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं इम्पोस्टर सिंड्रोम जैसी मानसिकता भी यहीं से पैदा होती हैं। अकेलापन, क्रोध, रिश्ते न निभा पाना, धक्के से उबर न पाना .... ये कहानियां वो कुछ पहलू टटोलती हैं, जो इस थीम पर हैं - अक्सर लोगों को याद नहीं रहता कि किसी ने क्या कहा, लेकिन ये सभी को हमेशा ही याद रहता है कि किसी ने उन्हें कैसा महसूस करवाया, अपना या पराया ? दोस्त या दुश्मन ? शर्मिंदा किया या सत्कार किया ?
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इंसान ने जंगलों को छोड़ स्थिरता को अपनाया, आज से बहुत साल पहले। पूरा संसार मेरा है वाला भाव जाता रहा, घर एक स्थायी इलाका हो गया। सीमित लेकिन सुरक्षित। इसने अपनेपन को मानव के डी एन ए में रचा बसा दिया। अब मानव वहीं पनपता है, जहाँ घर हो या घर वाला भाव। घर एक व्यक्ति भी है, हर एक संवेदना भी है। और दिल टूट जाता है जब अपनेपन का अभाव हो। ज़रा सी भी नकारात्मकता की बू आयी, तो फिर मानव का मन वहां नहीं ठहरता, ठहरना एक मजबूरी हो जाती है, सब होते हुए भी मन का एक कोना सूना और उदास ही बना रहता है। कोई इस भाव में फंसा रह जाता है, कोई निकल भागता है। उन तरल भावनाओं में, जहाँ खुद से कोई पूछने लगे, कि कहाँ के हम हैं? पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं इम्पोस्टर सिंड्रोम जैसी मानसिकता भी यहीं से पैदा होती हैं। अकेलापन, क्रोध, रिश्ते न निभा पाना, धक्के से उबर न पाना .... ये कहानियां वो कुछ पहलू टटोलती हैं, जो इस थीम पर हैं - अक्सर लोगों को याद नहीं रहता कि किसी ने क्या कहा, लेकिन ये सभी को हमेशा ही याद रहता है कि किसी ने उन्हें कैसा महसूस करवाया, अपना या पराया ? दोस्त या दुश्मन ? शर्मिंदा किया या सत्कार किया ?
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Product Details
ISBN-13: | 9789395697781 |
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Publisher: | Redgrab Books Pvt Ltd |
Publication date: | 06/26/2025 |
Pages: | 100 |
Product dimensions: | 5.50(w) x 8.50(h) x 0.24(d) |
Language: | Hindi |
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