Sahaj Samadhi Bhali, Bhag-1 (सहज समाधि भली, भाग - 1)
सहज-समाधि का अर्थ है कि परमात्मा तो उपलब्ध ही है; तुम्हारे उपाय की जरूरत नहीं है। तुम कैसे पागल हुए हो! पाना तो उसे पड़ता है, जो मिला न हो। तुम उसे पाने की कोशिश कर रहे हो, जो मिला ही हुआ है। जैसे सागर की कोई मछली सागर की तलाश कर रही हो। जैसे आकाश का कोई पक्षी आकाश को खोजने निकला हो। ऐसे तुम परमात्मा को खोजने निकले हो, यही भ्रांति है। परमात्मा तुम्हारे भीतर प्रतिपल है, तुम्हारे बाहर प्रतिपल है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस बात को ठीक से समझ लें, तो फिर कबीर की वाणी समझ में आ जाएगी।
पाना नहीं है परमात्मा को, सिर्फ स्मरण करना है। इसलिए कबीर, नानक, दादू एक कीमती शब्द का प्रयोग करते हैं, वह है--'सुरति, स्मृति, रिमेंबरिंग।' वे सब कहते हैं, उसे खोया होता तो पाते। उसे खो कैसे सकते हो? क्योंकि परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है--तुम्हारा परम होना है, तुम्हारी आत्मा है।
ओशो
* सहज-समाधि का क्या अर्थ है?
* मार्ग कौन है? कहां है मार्ग? कहां से चलूं कि पहुंच जाऊं?
* भय और लोभ का मनोविज्ञान
* आस्तिक कौन?
* जीवन जीने के दो ढंग संघर्ष और समर्पण
* अध्यात्म में और धर्म में क्या फर्क है?
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पाना नहीं है परमात्मा को, सिर्फ स्मरण करना है। इसलिए कबीर, नानक, दादू एक कीमती शब्द का प्रयोग करते हैं, वह है--'सुरति, स्मृति, रिमेंबरिंग।' वे सब कहते हैं, उसे खोया होता तो पाते। उसे खो कैसे सकते हो? क्योंकि परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है--तुम्हारा परम होना है, तुम्हारी आत्मा है।
ओशो
* सहज-समाधि का क्या अर्थ है?
* मार्ग कौन है? कहां है मार्ग? कहां से चलूं कि पहुंच जाऊं?
* भय और लोभ का मनोविज्ञान
* आस्तिक कौन?
* जीवन जीने के दो ढंग संघर्ष और समर्पण
* अध्यात्म में और धर्म में क्या फर्क है?
Sahaj Samadhi Bhali, Bhag-1 (सहज समाधि भली, भाग - 1)
सहज-समाधि का अर्थ है कि परमात्मा तो उपलब्ध ही है; तुम्हारे उपाय की जरूरत नहीं है। तुम कैसे पागल हुए हो! पाना तो उसे पड़ता है, जो मिला न हो। तुम उसे पाने की कोशिश कर रहे हो, जो मिला ही हुआ है। जैसे सागर की कोई मछली सागर की तलाश कर रही हो। जैसे आकाश का कोई पक्षी आकाश को खोजने निकला हो। ऐसे तुम परमात्मा को खोजने निकले हो, यही भ्रांति है। परमात्मा तुम्हारे भीतर प्रतिपल है, तुम्हारे बाहर प्रतिपल है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इस बात को ठीक से समझ लें, तो फिर कबीर की वाणी समझ में आ जाएगी।
पाना नहीं है परमात्मा को, सिर्फ स्मरण करना है। इसलिए कबीर, नानक, दादू एक कीमती शब्द का प्रयोग करते हैं, वह है--'सुरति, स्मृति, रिमेंबरिंग।' वे सब कहते हैं, उसे खोया होता तो पाते। उसे खो कैसे सकते हो? क्योंकि परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है--तुम्हारा परम होना है, तुम्हारी आत्मा है।
ओशो
* सहज-समाधि का क्या अर्थ है?
* मार्ग कौन है? कहां है मार्ग? कहां से चलूं कि पहुंच जाऊं?
* भय और लोभ का मनोविज्ञान
* आस्तिक कौन?
* जीवन जीने के दो ढंग संघर्ष और समर्पण
* अध्यात्म में और धर्म में क्या फर्क है?
पाना नहीं है परमात्मा को, सिर्फ स्मरण करना है। इसलिए कबीर, नानक, दादू एक कीमती शब्द का प्रयोग करते हैं, वह है--'सुरति, स्मृति, रिमेंबरिंग।' वे सब कहते हैं, उसे खोया होता तो पाते। उसे खो कैसे सकते हो? क्योंकि परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है--तुम्हारा परम होना है, तुम्हारी आत्मा है।
ओशो
* सहज-समाधि का क्या अर्थ है?
* मार्ग कौन है? कहां है मार्ग? कहां से चलूं कि पहुंच जाऊं?
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Sahaj Samadhi Bhali, Bhag-1 (सहज समाधि भली, भाग - 1)
256
Sahaj Samadhi Bhali, Bhag-1 (सहज समाधि भली, भाग - 1)
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Product Details
ISBN-13: | 9789354869167 |
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Publisher: | Diamond Pocket Books Pvt Ltd |
Publication date: | 02/15/2021 |
Pages: | 256 |
Product dimensions: | 5.50(w) x 8.50(h) x 0.75(d) |
Language: | Hindi |
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