Thithurata Huaa Gantantra
परसाई हँसाने की हड़बड़ी में नहीं होते। वे पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते, न ग्राहक, सिर्फ एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सि$र्फ इसलिए कि ये दोनों पर्व उनके लिए सिर्फ उत्सव नहीं, सोचने-विचारने के भी दिन हैं। वे नहीं चाहते कि इन दिनों को सिर्फ थोथी राष्ट्र-श्लाघा में व्यर्थ कर दिया जाए, जैसा कि आम तौर पर होता है। देखने का यही नज़रिया परसाई को परसाई बनाता है और हिन्दी व्यंग्य की परम्परा में उन्हें अलग स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। प्रचलित, स्वीकृत और उत्सवीकृत की वे बहुत निर्मम ढंग से चीर-फाड़ करते हैं। इसी संग्रह में 'इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर' शीर्षक व्यंग्य में वे भारतीय पुलिस की स्थापित सामाजिक सत्ता को ढेर-ढेर कर देते हैं। परसाई को राजनीतिक व्यंग्य के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है लेकिन इस संग्रह में उनके सामाजिक व्यंग्य ज़्यादा रखे गए हैं। इन्हें पढ़कर पाठक सहज ही जान सकता है कि सिर्फ राजनीतिक विडम्बनाएँ ही नहीं, समाज ने जिन दैनिक प्रथाओं और मान्यताओं को अपनी जीवन-शैली माना है, उनकी खाल-परे छिपे पिस्सुओं को भी वे उतने ही कौशल से देखते और झाड़ते हैं। परसाई का अपना एक बड़ा पाठक वर्ग हमेशा से रहा है जो उनकी तीखी बातें सुनकर भी उन्हें पढ़ता रहा है। इस संग्रह की यह प्रस्तुति निश्चय ही उन्हें सुखद लगेगी।
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Thithurata Huaa Gantantra
परसाई हँसाने की हड़बड़ी में नहीं होते। वे पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते, न ग्राहक, सिर्फ एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सि$र्फ इसलिए कि ये दोनों पर्व उनके लिए सिर्फ उत्सव नहीं, सोचने-विचारने के भी दिन हैं। वे नहीं चाहते कि इन दिनों को सिर्फ थोथी राष्ट्र-श्लाघा में व्यर्थ कर दिया जाए, जैसा कि आम तौर पर होता है। देखने का यही नज़रिया परसाई को परसाई बनाता है और हिन्दी व्यंग्य की परम्परा में उन्हें अलग स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। प्रचलित, स्वीकृत और उत्सवीकृत की वे बहुत निर्मम ढंग से चीर-फाड़ करते हैं। इसी संग्रह में 'इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर' शीर्षक व्यंग्य में वे भारतीय पुलिस की स्थापित सामाजिक सत्ता को ढेर-ढेर कर देते हैं। परसाई को राजनीतिक व्यंग्य के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है लेकिन इस संग्रह में उनके सामाजिक व्यंग्य ज़्यादा रखे गए हैं। इन्हें पढ़कर पाठक सहज ही जान सकता है कि सिर्फ राजनीतिक विडम्बनाएँ ही नहीं, समाज ने जिन दैनिक प्रथाओं और मान्यताओं को अपनी जीवन-शैली माना है, उनकी खाल-परे छिपे पिस्सुओं को भी वे उतने ही कौशल से देखते और झाड़ते हैं। परसाई का अपना एक बड़ा पाठक वर्ग हमेशा से रहा है जो उनकी तीखी बातें सुनकर भी उन्हें पढ़ता रहा है। इस संग्रह की यह प्रस्तुति निश्चय ही उन्हें सुखद लगेगी।
32.99
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Thithurata Huaa Gantantra
130
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Product Details
ISBN-13: | 9788126730803 |
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Publisher: | Rajkamal Prakashan |
Publication date: | 01/01/2018 |
Pages: | 130 |
Product dimensions: | 5.50(w) x 8.50(h) x 0.44(d) |
Language: | Hindi |
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