bamsa ki kursi (gita-navagita sangraha)

समीक्षा –संजीव वर्मा सलिल

गीत-नवगीत के मध्य भारत-पकिस्तान की तरह सरहद खींचने पर उतारू और एक को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने के दुष्प्रयास में जुटे समीक्षक-समूह की अनदेखी कर मौन भाव से सतत सृजन-साधना में निमग्न रहकर अपनी रचनाओं के माध्यम से उत्तर देने में विश्वास रखनेवाली कल्पना रामानी का यह दूसरा गीत-नवगीत संग्रह आद्योपांत प्रकृति और पर्यावरण की व्यथा-कथा कहता है। आवरण पर अंकित धरती के तिमिर को चीरता-उजास बिखेरता आशा-सूर्य और झूमती हुई बालें आश्वस्त करती हैं कि नवगीत प्रकृति और प्रकृतिपुत्र के बीच संवाद स्थापितकर निराशा में आशा का संचार कर सकने में समर्थ है। कल्पना जी ने 'शत-शत वंदन सूर्य तुम्हारा', 'सूरज की संक्रांति क्रांति से' तथा 'भक्ति-भाव का सूर्य उगा' रचकर तिमिरांतक के प्रति आभार व्यक्त किया है।
हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू के कटघरों से मुक्त कल्पना जी कथ्य की आवश्यकतानुसार शब्दों का प्रयोग करती हैं.
कल्पना जी परंपरा का अनुसरण करने के साथ-साथ नव भाषिक प्रयोग कर पाठकों-श्रोताओं का अभिव्यक्ति सामर्थ्य बढ़ाती हैं।

नवगीत को सामाजिक विसंगतियों, विडंबनाओं, त्रासदियों और टकरावों से उपजे दर्द, पीड़ा और हताशा का पर्याय मानने-बतानेवाले साम्यवादी चिन्तन से जुड़े समीक्षकों को नवगीत के सम्बन्ध में कल्पना जी की सोच से असहमति और उनके नवगीतों को स्वीकारने में संकोच हो सकता है किन्तु इन्हीं तत्वों से सराबोर नयी कविता को जनगण द्वारा ठुकराया जाना और इन्हीं प्रगतिवादियों द्वारा गीत के मरण की घोषणा के बाद भी गीत की लोकप्रियता बढ़ती जाना सिद्ध करता है नवगीत के कथ्य और कहन के सम्बन्ध में पुनर्विचार कर उसे उद्भव काली दमघोंटू और सामाजिक बिखरावजनित मान्यताओं से मुक्त कर उत्सवधर्मी नवाशा से संयुक्त किया जाना समय की माँग है। इस संग्रह के गीत-नवगीत यह करने में समर्थ हैं।
'बाँस की कुर्सी', 'पालकी बसन्त की', दिन बसन्ती ख्वाबवाले', 'मन जोगी मत बन', 'कलम गहो हलधर' आदि गीत इस संग्रह की उपलब्धि हैं।

सारत:, कल्पना जी के ये गीत अपनी मधुरता, सरसता, सामयिकता, सरलता और पर्यावरणीय चेतना के लिए पसंद किये जाएंगे। इन गीतों में स्थान-स्थान पर सटीक बिम्ब और प्रतीक अन्तर्निहित हैं।

कल्पना जी के मधुर गीत-नवगीत फिर-फिर पढ़ने की इच्छा शेष रह जाना और अतृप्ति की अनुभूति होना ही इस संग्रह की सफलता है।

समीक्षाकार- संजीव वर्मा सलिल

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समीक्षा –संजीव वर्मा सलिल

गीत-नवगीत के मध्य भारत-पकिस्तान की तरह सरहद खींचने पर उतारू और एक को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने के दुष्प्रयास में जुटे समीक्षक-समूह की अनदेखी कर मौन भाव से सतत सृजन-साधना में निमग्न रहकर अपनी रचनाओं के माध्यम से उत्तर देने में विश्वास रखनेवाली कल्पना रामानी का यह दूसरा गीत-नवगीत संग्रह आद्योपांत प्रकृति और पर्यावरण की व्यथा-कथा कहता है। आवरण पर अंकित धरती के तिमिर को चीरता-उजास बिखेरता आशा-सूर्य और झूमती हुई बालें आश्वस्त करती हैं कि नवगीत प्रकृति और प्रकृतिपुत्र के बीच संवाद स्थापितकर निराशा में आशा का संचार कर सकने में समर्थ है। कल्पना जी ने 'शत-शत वंदन सूर्य तुम्हारा', 'सूरज की संक्रांति क्रांति से' तथा 'भक्ति-भाव का सूर्य उगा' रचकर तिमिरांतक के प्रति आभार व्यक्त किया है।
हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू के कटघरों से मुक्त कल्पना जी कथ्य की आवश्यकतानुसार शब्दों का प्रयोग करती हैं.
कल्पना जी परंपरा का अनुसरण करने के साथ-साथ नव भाषिक प्रयोग कर पाठकों-श्रोताओं का अभिव्यक्ति सामर्थ्य बढ़ाती हैं।

नवगीत को सामाजिक विसंगतियों, विडंबनाओं, त्रासदियों और टकरावों से उपजे दर्द, पीड़ा और हताशा का पर्याय मानने-बतानेवाले साम्यवादी चिन्तन से जुड़े समीक्षकों को नवगीत के सम्बन्ध में कल्पना जी की सोच से असहमति और उनके नवगीतों को स्वीकारने में संकोच हो सकता है किन्तु इन्हीं तत्वों से सराबोर नयी कविता को जनगण द्वारा ठुकराया जाना और इन्हीं प्रगतिवादियों द्वारा गीत के मरण की घोषणा के बाद भी गीत की लोकप्रियता बढ़ती जाना सिद्ध करता है नवगीत के कथ्य और कहन के सम्बन्ध में पुनर्विचार कर उसे उद्भव काली दमघोंटू और सामाजिक बिखरावजनित मान्यताओं से मुक्त कर उत्सवधर्मी नवाशा से संयुक्त किया जाना समय की माँग है। इस संग्रह के गीत-नवगीत यह करने में समर्थ हैं।
'बाँस की कुर्सी', 'पालकी बसन्त की', दिन बसन्ती ख्वाबवाले', 'मन जोगी मत बन', 'कलम गहो हलधर' आदि गीत इस संग्रह की उपलब्धि हैं।

सारत:, कल्पना जी के ये गीत अपनी मधुरता, सरसता, सामयिकता, सरलता और पर्यावरणीय चेतना के लिए पसंद किये जाएंगे। इन गीतों में स्थान-स्थान पर सटीक बिम्ब और प्रतीक अन्तर्निहित हैं।

कल्पना जी के मधुर गीत-नवगीत फिर-फिर पढ़ने की इच्छा शेष रह जाना और अतृप्ति की अनुभूति होना ही इस संग्रह की सफलता है।

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गीत-नवगीत के मध्य भारत-पकिस्तान की तरह सरहद खींचने पर उतारू और एक को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने के दुष्प्रयास में जुटे समीक्षक-समूह की अनदेखी कर मौन भाव से सतत सृजन-साधना में निमग्न रहकर अपनी रचनाओं के माध्यम से उत्तर देने में विश्वास रखनेवाली कल्पना रामानी का यह दूसरा गीत-नवगीत संग्रह आद्योपांत प्रकृति और पर्यावरण की व्यथा-कथा कहता है। आवरण पर अंकित धरती के तिमिर को चीरता-उजास बिखेरता आशा-सूर्य और झूमती हुई बालें आश्वस्त करती हैं कि नवगीत प्रकृति और प्रकृतिपुत्र के बीच संवाद स्थापितकर निराशा में आशा का संचार कर सकने में समर्थ है। कल्पना जी ने 'शत-शत वंदन सूर्य तुम्हारा', 'सूरज की संक्रांति क्रांति से' तथा 'भक्ति-भाव का सूर्य उगा' रचकर तिमिरांतक के प्रति आभार व्यक्त किया है।
हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू के कटघरों से मुक्त कल्पना जी कथ्य की आवश्यकतानुसार शब्दों का प्रयोग करती हैं.
कल्पना जी परंपरा का अनुसरण करने के साथ-साथ नव भाषिक प्रयोग कर पाठकों-श्रोताओं का अभिव्यक्ति सामर्थ्य बढ़ाती हैं।

नवगीत को सामाजिक विसंगतियों, विडंबनाओं, त्रासदियों और टकरावों से उपजे दर्द, पीड़ा और हताशा का पर्याय मानने-बतानेवाले साम्यवादी चिन्तन से जुड़े समीक्षकों को नवगीत के सम्बन्ध में कल्पना जी की सोच से असहमति और उनके नवगीतों को स्वीकारने में संकोच हो सकता है किन्तु इन्हीं तत्वों से सराबोर नयी कविता को जनगण द्वारा ठुकराया जाना और इन्हीं प्रगतिवादियों द्वारा गीत के मरण की घोषणा के बाद भी गीत की लोकप्रियता बढ़ती जाना सिद्ध करता है नवगीत के कथ्य और कहन के सम्बन्ध में पुनर्विचार कर उसे उद्भव काली दमघोंटू और सामाजिक बिखरावजनित मान्यताओं से मुक्त कर उत्सवधर्मी नवाशा से संयुक्त किया जाना समय की माँग है। इस संग्रह के गीत-नवगीत यह करने में समर्थ हैं।
'बाँस की कुर्सी', 'पालकी बसन्त की', दिन बसन्ती ख्वाबवाले', 'मन जोगी मत बन', 'कलम गहो हलधर' आदि गीत इस संग्रह की उपलब्धि हैं।

सारत:, कल्पना जी के ये गीत अपनी मधुरता, सरसता, सामयिकता, सरलता और पर्यावरणीय चेतना के लिए पसंद किये जाएंगे। इन गीतों में स्थान-स्थान पर सटीक बिम्ब और प्रतीक अन्तर्निहित हैं।

कल्पना जी के मधुर गीत-नवगीत फिर-फिर पढ़ने की इच्छा शेष रह जाना और अतृप्ति की अनुभूति होना ही इस संग्रह की सफलता है।

समीक्षाकार- संजीव वर्मा सलिल


Product Details

BN ID: 2940163323944
Publisher: ?????? ??????
Publication date: 08/08/2019
Sold by: Smashwords
Format: eBook
File size: 277 KB
Language: Hindi

About the Author

६ जून १९५१ को उज्जैन में जन्म। कंप्यूटर से जुड़ने के बाद रचनात्मक सक्रियता। कहानियाँ, लघुकथाओं के अलावा गीत, गजल आदि छंद विधाओं में रुचि.
लेखन की शुरुवात -सितम्बर २०११ से
रचनाएँ अनेक स्तरीय मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ ही अंतर्जाल पर लगातार प्रकाशित होती रहती हैं।

*प्रकाशित कृतियाँ-
१)नवगीत संग्रह- “हौसलों के पंख”(२०१३-अंजुमन प्रकाशन)
३)गीत-नवगीत- संग्रह-“खेतों ने ख़त लिखा”(२०१६-अयन प्रकाशन)
४)ग़ज़ल संग्रह- संग्रह मैं ‘ग़ज़ल कहती रहूँगी’(२०१६ अयन प्रकाशन)

*पुरस्कार व सम्मान
-पूर्णिमा वर्मन(संपादक वेब पत्रिका-“अभिव्यक्ति-अनुभूति”)द्वारा मेरे प्रथम नवगीत संग्रह पर नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित
-कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब में प्रकाशित कहानी 'कसाईखाना' कमलेश्वर स्मृति पुरस्कार से सम्मानित
- कहानी 'अपने-अपने हिस्से की धूप" प्रतिलिपि कहानी प्रतियोगिता में प्रथम व लघुकथा "दासता के दाग" के लिए लघुकथा प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित

*सम्प्रति
वर्तमान में वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका- अभिव्यक्ति-
अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत।

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