kavyadarsa (kavya sangraha)

निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
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निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
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निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।


Product Details

BN ID: 2940155940296
Publisher: ?????? ??????????
Publication date: 12/28/2018
Sold by: Smashwords
Format: eBook
File size: 254 KB
Language: Hindi

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सम्पादक के पद पर कार्यरत

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