यह मेरा पाँचवाँ व्यंग्य-संकलन है। इसके साथ कहानी और व्यंग्य के संकलनों की संख्या बराबर हो गयी। कहानी और व्यंग्य समान गति से लिखने और प्रकाशित होने के बावजूद दूसरा व्यंग्य-संग्रह बहुत विलंब से प्रकाशित हुआ और इस प्रकार असन्तुलन उत्पन्न हुआ। 'वर्जिन साहित्यपीठ' के संचालक श्री ललित मिश्र ने तीन संग्रह प्रकाशित कर इस अन्तर को पाटने में सहयोग दिया है। वे सुलझे हुए, साफ-सुथरे व्यक्ति हैं। उनका बहुत आभारी हूँ।
लिखना, न लिखना लेखक के हाथ में नहीं होता। लिखना लेखक की मजबूरी होती है। अब साहित्य के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है। लेखक के लिए स्थितियाँ चुनौतीपूर्ण और मायूस करने वाली हैं। लेकिन इस कुहासे के बावजूद भरोसा है कि अच्छे साहित्य का मूल्य और महत्व रहेगा। तब तक 'हम हाले दिल सुनाएंगे, सुनिए कि न सुनिए।'
यह मेरा पाँचवाँ व्यंग्य-संकलन है। इसके साथ कहानी और व्यंग्य के संकलनों की संख्या बराबर हो गयी। कहानी और व्यंग्य समान गति से लिखने और प्रकाशित होने के बावजूद दूसरा व्यंग्य-संग्रह बहुत विलंब से प्रकाशित हुआ और इस प्रकार असन्तुलन उत्पन्न हुआ। 'वर्जिन साहित्यपीठ' के संचालक श्री ललित मिश्र ने तीन संग्रह प्रकाशित कर इस अन्तर को पाटने में सहयोग दिया है। वे सुलझे हुए, साफ-सुथरे व्यक्ति हैं। उनका बहुत आभारी हूँ।
लिखना, न लिखना लेखक के हाथ में नहीं होता। लिखना लेखक की मजबूरी होती है। अब साहित्य के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है। लेखक के लिए स्थितियाँ चुनौतीपूर्ण और मायूस करने वाली हैं। लेकिन इस कुहासे के बावजूद भरोसा है कि अच्छे साहित्य का मूल्य और महत्व रहेगा। तब तक 'हम हाले दिल सुनाएंगे, सुनिए कि न सुनिए।'

mahakavi 'unmatta' ki sisya (vyangya sankalana)

mahakavi 'unmatta' ki sisya (vyangya sankalana)
Product Details
BN ID: | 2940165841552 |
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Publisher: | Virgin sahityapeeth |
Publication date: | 04/17/2022 |
Sold by: | Smashwords |
Format: | eBook |
File size: | 314 KB |
Language: | Hindi |