indradhanusa (kavya sangraha)

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

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indradhanusa (kavya sangraha)

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

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मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ

मन कभी शांत है बहुत,
कभी हलचल भी है बहुत,
कभी दर्द सहता हूँ ,
कभी गीत कहता हूँ
कभी रमता जोगी हूँ,
कभी बुद्ध रहता हूँ
मैं मौन कहता हूँ

दरख़्त बेजुबान ही सही,
मगर दर्द तो सहता है,
फिर भी छाँव देता है,
फल दूंगा यही कहता है
मैं मौन कहता हूँ


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BN ID: 2940155244486
Publisher: ?????? ??????????
Publication date: 05/04/2018
Sold by: Smashwords
Format: eBook
File size: 216 KB
Language: Hindi

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सम्पादक के पद पर कार्यरत

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